कलम तुम क्यों नही लिखती

 



कलम तुम क्यों नहीं लिखती,
मधुर सम्बन्ध की बातें?
कलम तुम क्यों नहीं करती ,
सफल अनुबन्ध की बातें।


सजाए स्वप्न में  जो सुमन,
उन सुमनों ने लूटा है।
सुरभि क्या मिल सकी उनसे, 
वहाँ का प्रेम झूठा है।
तड़प अपनी कहें किससे, 
किसी ने कब कहा अपना।
मिली जो पीर जग मग में, 
उसे सहचर कहा अपना।
हमें रुचिकर नहीं लगती ,
प्रबल छलछन्द की बातें।
कलम तुम क्यों नहीं लिखती,
मधुर सम्बन्ध की बातें।। 


उन्हें माणिक उन्हें मोती,
उन्हें नीलम समझते थे।
हमारे हृदय के वह रत्न,
यह तो हम समझते थे।
उन्हीं की कान्ति से चमके, 
हमारी प्रीति के उपवन।
हमारी हर पुलक उनसे, 
हमारे भाल के चन्दन।
उन्होंने क्यों चालाई थी,
यहाँ अब द्वन्द्व की बातें।
कलम तुम क्यों नहीं लिखती,
मधुर सम्बन्ध की बातें।। 


हमारी हर खुशी उनके सुखद,
होने से होती थी।
हमारी साँस की हर आस में,
बस आप होती थीं।
कभी उस मधुर सी स्मिति, 
तरल मधुरीति की हलचल।
कभी बनती प्रबल चपला,
कभी भावों की वह झलमल।।
वही अनुभूति आ जाए,
यही बस कामना मन में।
उसी अनुमान में पलती,
मधुर शुचि छन्द की बातें।।



           (डॉ राजेश तिवारी विरल)
                  हिन्दी विभाग,
          डी.ए-वी.कालेज, कानपुर,
            उत्तर प्रदेश-208013
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